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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ पक्षके विरोधि है, इनके परिचयसें हमारे पक्षकी हानी होवे है इनका परिचय आगमन वगेरे अछा नहिं है, इसलिये अपने मंदिर मठ वगेरेमें इनको इनोंकीविधिसें इनोकेमंतव्य प्रमाणे धार्मिक क्रिया नहिं करणे देना इस समय इनोका बहुत बडा प्रभाव पडे है, इस वजेसें इनोंके ख्योभसें इनोंके सामने हमारे पक्षवाले कोइभी इससमय निषेध करणेंके लिये नहिं आवेंगे, इस समय इनोंके पक्षकी प्रचुर प्रबलता भइ हैं, हमारे पक्षवाले सर्व कायर हैं, इत्यादि उस आर्यानें अपणे मनमें विचार करके स्त्री जाति होणेसें एकदम साहसअवलंबनकरके बोली के इस समय जिसतिसउपायकरकेमेंमनाकरूं, जिस्से हमारीपरम्परा आचरणाका लोप न होवे, और लोकोंमे हमारी निंदा हासीभी न होवे, वैसा वरताव करं, बादमें वह आर्यामन्दिरके दरवजेमें आडी गिरके रही, अर्थात् मन्दिरके दरवाजेमें आडी मार्ग रोकणेके लिये सोगई" वादमें मन्दिरकेदरवाजेपरआये हुवे आचार्यश्रीकों देखके आचार्यश्रीके प्रति पूर्वोक्त दुष्ट चित्तवाली आर्यानें कहा कि, जो आपश्री इस हमारे मन्दिरमे मेरा अपमान करके प्रवेश करेगें, तो में अवश्य इहांपर मरंगी मरंगी, वैसा अप्रीतिका कारण जाणके देखके वादमें पूज्यश्री वहांसें पीछे लोटके अपणे स्थानपर आये, वादमें धर्मांतराय मिटानेके लिये और आचार्यश्रीकी आज्ञा आराधनेके लिये धर्मिष्ट परमभक्त श्रावकोंनें कहां, हे भगवन् बहुतसें हमारे घर बडे बडे हैं, वास्ते कोइ घरके ऊपर मजलमें चउवीसमहाराजका चित्रितपट्टधरके देववंदनादि सर्वधर्मकार्यकरें, और गर्भापहार कल्याणककी आराधनाकी For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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