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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ इत्यादि नमस्कार बत्तीसी करी, वाद अंतकीदोयगाथा अत्यंतदेवतावगेरेकी आकर्षण करनेवाली जाणके, शासन देवताने कहा, हेभगवन् इसस्तोत्रकी तीसगाथा कहेणेंसेहि हम अपणेठिकाणे रहेहुवेहि सर्वस्तोत्रका पाठकरणेवाले भव्योंका सर्व कष्ट दूर करेंगे, संपूर्णस्तोत्रका पाठकरणेवालोंके प्रत्यक्ष होणा हमारे बहुतहि कष्टका कारणहै, इसकारणसें, परमेसर सिरिपासनाह धरणिंद पयहिय, पउमावई वहरुट देव जय विजयालंकिय, तिहुअणमंततिकोंण विज्ज सिरिहरि महीमंडिअ, तियवेढिय महविजदेव थंभणयपुरद्विय ॥१॥ सत्तमवन्न जगद्धवन्न सरअविभूसिय, वंजणवन्न दसद्धवन सिरिमंडलपूरिय, चिरिमिरिकित्तिसुबुद्धिलच्छि किर मंत सुसायर थंभणपास जिणंद सिद्ध मह वंछिय पूरण ॥२॥ एव महारिह जत्त देव इयन्हवणमहुसउ, जंअण लिय गुणगहण तुम्ह मुणिजण अणिसिद्धउ, इय मइं पसियसुपासनाह थंभणय पुरहिअ, इयमुणिवर सिरि अभयदेव विण्णवइ आणंदिअ. ॥ ३२ ॥ यह गाथा आपश्री हमारेपर कृपा करके भंडार करो, वादमें देवताके आग्रहसें दाक्षिण्यताके समुद्र ऐसे आचार्य श्रीने वैसाहि करा, वादमें आचार्यमहाराजनें समस्तसंघके साथ चैत्यवंदन करा, वादमें श्रावक समुदायनें विस्तारसें, स्मात्र, विलेपन, मुकुट, कुंडल, वगेरे आभूषण पहिराणेकर और सुगंध युक्त पुष्प चढाणेकर अनेक प्रकारसे पूजा करी, और मनोहर शाल स्तंभा तोरण चोकी वगेरे करके शोभित अत्यंत उंचा For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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