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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ अर्थ श्रेष्ठतर्कशक्तियुक्त तर्कशास्त्र और न्यायशास्त्रोंकी चर्चाकरके पूजितहै चातुर्ययुक्तवाणी जिणोंकी, संपूर्णविद्यारूपी समुद्रमें कलशकेसदृश, और जंगमश्रेष्ठमहत्कीर्तिस्तंभ, वर्तमान समयमें दिखाइ देरहेहैं, ऐसे श्रीजिनप्रसन्नचंद्रसरिजी, श्रीजिनवर्द्धमानसूरिजी, श्रीजिनहरिभद्रसरिजी, श्रीजिनदेवभद्रसूरिजी, वगेरे श्रुतचारित्रास्मक लक्ष्मीसें सुशोभित वर्तमान समयमेंभी जिसनवांगीकृत्तिकर्ताश्रीजिनअभयदेवमूरिजीके सुशिष्य मौजूद हैं ॥१॥ बादमें श्रीजिनेश्वरसरिजी आशापल्लीमें पधारे, वहां व्याख्यानमें विचक्षणलोक बेठतें हैं, वास्ते विचक्षण लोकोंका मनरूपकुमुदकुंविकसितकरनेवाली जो पूर्णमासी चंद्रिका, ( याने चंद्रमाकी चांदणी,) उसकी साक्षात् बेनहोवे वैसी, संवेगयुक्त वैराग्यकों बढाणेवाली, ऐसी लीलावतीनामककथा, विक्रमसंवत् (१०९२) के साल रची, तथा श्रीजिनेश्वरसूरिजी डिंडियाणक ग्राम पधारे वहां पूज्यपाद श्रीजिनेश्वरमुरिजीने व्याख्यानमें वाचणेवास्ते चैत्यवासी आचायाँके पाससे पुस्तक मांगा, कलुषितहृदयवाले उनचैत्यवासीआचार्योंने नहिं दिया बादमे पिछाडीके पहोर दोयमें बनावे, और प्रभातके व्याख्यानमें वाचे, इसकारणसें, उसीगामके चउमासेमे, कथानक कोश, किया, तथा मरुदेवा नामकी महत्तरा थी, उसनें अनशन ग्रहण किया, ४० दिनतक अनशनमें रही, उसकुं श्रीजिनेश्वरसरिजीने समाधि उत्पन्न करी, और उस महत्तराकुं कहा कि जहां तें उत्पन्न होवे, वह स्थान हमकुं कहना, उस महत्तरानेभी कहा हे भगवन् ! इसीतरे करुंगी, यह वचनअंगीकारकिया, बाद पंच १४ दत्तसूरि. For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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