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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ वाद विचार न्यायवादी राजाके सन्मुख किया हूवा शोभे है इस कारणसे युक्त अयुक्त विचारमे चतुर ऐसे आपको प्रसन्न होकर उस सद्धर्म विषयि वाद विचार अवसरमे सभापति पणे होणा होगा यह पुरोहितका वचन सुणके श्रीदुर्लभ राजानें कहा कि इसमे क्या अयुक्त है अर्थात् यह कहणा तो अच्छा है, यह तो हमारा कर्त्तव्यही है इसलिये कुछभी अनिष्ट नहीं है और सद्धर्मविषयीवादविचार अवश्य होणा हि चाहिये सद्धर्मविषयि वादविचारमे सभापति होणा और सद्धर्मका निर्णय कराके उसका अच्छीतरह संरक्षण करणा और कराणा यह हमारा मुख्य कर्त्तव्य और धर्म है वास्ते इस सद्धर्मविषयिवादविचारमे समदृष्टिपूर्वक सभापतिपणे हाजर होवुगा इसतरे श्रीदुर्लभराजाने पुरोहितका वचन अंगीकारकरा तब उस पंचासर संज्ञक वडे देहरासरम-सिंहासन गादी गोलआसणवगेरेकि विछायत भई बाद चैत्यवासी सूराचार्य वगेरे नानादेशोद्भव उज्वल श्लक्ष्ण चाकुचिक्य वस्त्र पहरे हूवे रजोहरणसहित केसोंमे तैल लगाया है ऐसे लंबमान मुहपत्ति सहित तैलसै ओपित डंडयुक्त तांबूल खाते हुवै लाल मुख जिणुका पालखियोंमे बैठे ऐसे भंडारी मंत्री सेठ प्रमुख धनवान श्रावक भक्तिसे साथमें हैं जिणोंके सधवश्राविका अपणाआपणा आचार्योंका गुणगातिभई भक्तिसहितधवलमंगल गीत ध्वनिसे रंजित किया है सबलोकोंकों जिणोने, भट्ट विरुद बोलते हैं लोक नमस्कार करते हैं मार्गमे जिणोंको, पंडितपणेका अभिमानसहित हाथमें वादपुस्तिका धारणकियाहै ऐसे बडे आडंबर सहित For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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