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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चर पुरुष इहांपर आये हैं उणोंकों रहेणे वास्ते मकान क्या तुमने दीया है ऐसा राजाका वचन सुनके पुरोहितनें कहा कि किसने यह दूषण उत्पन्न किया है जो वे मुनि लोक परदेशी चर पुरुष हैं तो किंबहुना बहुतकहणेसें क्या प्रयोजन है, जो वे श्वेताम्बर मुनियोंपर यहदूषणसत्य है तो उणोंके तरफसे में जमानत में एकलाख द्रव्यकी किंमतवाली पटी याने वस्त्र देताहुं ऐसा राजसभामे सर्वलोकोंके सामने कहके अपणे पासका १ लाख किमत वाला वस्त्र राजसभामे सर्व लोकोंके सन्मुख डाला परंतु किसिकी हिंमत न हुइके उस वस्त्र कुं लेवे और जो मैरे घरमें रहे हुवे मुनियोंमें दूषणका गंधभि होवे तो दोषारोपणकरणेवाले या कहेणेवाले इस पटीकुं उठावो ऐसा कहकर पुरोहित चुपका हूवा उसके बाद वहां राजसभामें बहुतचैत्यवासियोंके भक्त मंत्री श्रेष्ठि प्रमुख प्रधान पुरुष बैठेथे परंतु किसीने भि उस पटीकुं उठाही नहिं उसकेवाद राजाके आगे पुरोहितने कहाके हेदेव न विनापरवान, रमते दुर्जनो जनः, श्वेव सर्वरसान् भुक्त्वा विनाऽमेध्यं न तृप्यति॥१॥ महतां यदेव मूर्धनि तदेव नीचाश्रयाय मन्यन्ते ॥ लिंगं प्रणमंति बुधाः, काकः पुनरासनी कुरुते ॥२॥ व्याख्या-जेसे कुत्ता सर्व रसका भोजनकरकेमि विष्ठा विना. धाये नहिं इसीतरह दुर्जन मनुष्यभी निंदा किये विना संतोष पावे नहिं ॥१॥ मोटा पुरुषोंके जो वस्तु मस्तक उपर धारण लायक होती है उसकुं नीच पुरुष अपणा नीच आश्रय माने है जैसे For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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