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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ दाक्षिण्यता और नीति करके जगतमें प्रसिद्ध एसा कोण पुरुष बहुत शोभता है, ॥१॥ इहां पर यह उत्तर है, १ सा-लक्ष्मी २ ओम् ३ अध्वज ४ ध्वज ५ सोमध्वज-चंद्रप्रभु १ महादेव २ जटाधर ३ यह ३ नाम निकलते है सा १ ओम् २ अध्वज ३ ध्वज ४ सोमध्वज ५ इन ५ उत्तरके अंदरसैं ७ नाम निकलतें हैं सो क्रमसें जाणलेना ।। इस प्रकारसे अपणे नामका प्रश्नोत्तर सुणके यह सोमध्वज ब्रह्मचारी बहुत खुशी हुवा और इसका श्वेताम्बर दर्शन उपर बहुमान हूवा और प्रासुक अन्नदान वि दीया और वो ब्राह्मण लोकोंके सन्मुख आचार्यश्रीकी गुणकी स्तुति वगेरे कहणे पूर्वक भक्तिसतकार करणे लगा उसके बाद उसी भामह साह सार्थ वाहके सथवाडेके साथ चले और क्रमसे अणहिलपत्तनमे पोहोचे और चारतरफकोटवाली मांडवीमें उतरें परंतु तिस मांडवीमें मकान है नहिं केवल मांडवीके अंदर चोतरेपर उतरे इस नगरमे सुविहित साधुका भक्त कोईभी श्रावक नहिं है जिसकेपास मकान वगेरेकी याचना करे जितने वहां रहे हूवे मुनियोंके सूर्यका ताप नजीकमे आया तब पंडित जिनेश्वरसूरिजीने इसतरे कहा हे भगवन् ऐसे बेठनेसे कोइ वि काम होगा नहिं इसवास्ते कुछ उद्यम किया जावे तो अच्छा है तब श्रीवर्द्धमानसूरिजी गुरुमहाराज बोले हे सुशिष्य तुम कहो क्या करें पंडित श्रीजिनेश्वरमरिजीने कहा कि जो आपश्री आज्ञाकरोतो यह सामने उंचा घर है इसमे जावं तब श्रीवर्द्धमानसूरिजीनें कहा जावो वाद सद्गुरुके चरणकमलोंमे वंदना नमस्कार करके उस उंचे धवले घरमें गये वो मकान श्रीदु For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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