SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६९ देवताभी नहिं आई, और उणदेवताओंने कुछभि नहिं कहा उसका क्या कारण है तब धरणेंद्र नागराजने कहा हे भगवन् तुमारे सूरिमंत्रका एक अक्षर कम है याने गिरता है तिस अशुद्धता के कार सें देवता नहिं आवे में आपके तपके बलसे आया हूं, तब श्रीगुरुमहाराजने कहा हे महाभाग पहिले सूरिमंत्र शुद्धकर पीछे दूसरा कार्य करूंगा ऐसा सुनकर धरणेंद्रनें कहा हे भगवन् सूरिमंत्रके अक्षरकी अशुद्धिकी शुद्धि करणेकुं तीर्थंकरविना किसीकीमि शक्ति नहिं है, तत्र सूरिजीनें सूरिमंत्रका गोला यानें डब्बा दिया तब धरणेंद्रनें महाविदेहक्षेत्र मे श्रीसीमंधरस्वामिकुं वह गोला दिया श्रीसीमंधरस्वामिनें तिस सूरिमंत्रकुं शुद्धकरके धरणेंद्रकुं दिया तब वह सूरिमंत्रका गोला श्रीवर्द्धमानसूरिजी कुं पीछा धरणेंद्रनें दिया, तब तीनवार तिस सूरिमंत्रका स्मरण करणे करके सर्व अधिष्ठायक देव प्रत्यक्ष हवे तब श्रीगुरुमहाराजने पूछा कि हमकुं विमलदंडनायक पूछे है, आबुगिरि शिखर पर जिनप्रतिमारूप तीर्थ है अथवा नहिं तब अधिष्ठायक देवोंने कहा आदेवीके पास डावे तरफ श्री अर्बुदआदिनाथ स्वामीकी प्रतिमा हैं और जहां अखंड अक्षतका स्वस्तिक उसपर चारलडी पुष्पोंकी माला देखणे मे आवे वहाँपर खोदणा एसा देवताका वचन सुके श्रीगुरुमहाराजने विमलश्रावकके आगे सर्व हाल कहा तिस विमलसाहनें उसी प्रमाणे कीया प्रतिमा निकली तब विमल - श्रावक सर्व पापंडियोंकुं बुलाये देखी जिनप्रतिमा कालामुख हूवा तब विमलसानें देरासर कराणा शरु किया, पाखंडियोंने विमल For Private And Personal Use Only -
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy