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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१ २८ श्रीविक्रमसरिके पाट ऊपर श्री नरसिंहमूरि बैठे, यतः ॥ "नरसिंहमूरिरासी, दतोऽखिलग्रंथपारगोयेन ॥ यक्षोनरसिंहपुरे, मांसरतिस्त्याजिता स्खगिरा ॥१॥" । २९ श्रीनरसिंहमूरिके पाट ऊपर श्रीसमुद्रसूरि हुए ॥ श्लोकः ।। वसंततिलकावृत्तम् ॥ "खोमीणराज कुलजोऽपि समुद्रमरि, गच्छं शशास किल यः प्रवणः प्रमाणी ॥ जित्वा तदा क्षपणकान् स्ववशं वितेने नागहृदेभुजगनाथनमस्थतीर्थम् ॥ १॥" __३० श्रीसमुद्रमूरिके पाट ऊपर श्रीमानदेवसरि हुए ॥ श्लोकः।। बसंततिलकावृत्तम् ॥ "विद्यासमुद्रहरिभद्रमुनींद्रमित्रं, मूरिर्बभूव पुनरेवहि मानदेवः ॥ मांद्यात्प्रयातमपियोनघसरिमंत्रं ले बिकासुखगिरा तपसोज्जयते ॥१॥" श्रीमहावीरस्वामीसें एक हजार वर्ष पीछे सत्यमित्र आचार्यके साथ पूर्वोका व्यवच्छेद हुआ, यहां १ श्री नागहस्ति, २ रेवतीमित्र, ३ ब्रह्मद्वीप, ४ नागार्जुन, ५ भूतदिन्न, ६ श्री कालकसरि, ये छै युगप्रधान यथाक्रमसें श्रीवज्रसेनसूरि और सत्यमित्रके बीचमें हुए, इन पूर्वोक्त छै युगप्रधानोंमेंसें शक्राभिवंदित श्रीकालिकाचार्य श्रीमहावीरस्वामीसें (९९३) वर्ष पीछे पंचमीसें चौथकी संवत्सरी करी, तथा श्री महाबीरात् (९८०) वर्ष पीछे एक पूर्व विद्या धारक युगप्रधान श्री देवर्द्धिगणिः क्षमाश्रमण हुए जिणोंने शाशन देवके सहायसें सर्व साधुवोकों इकट्ठा करके सर्व सिद्धांत पुस्तकोंमें लिखाया इससे यह बडे प्रवचन प्रभावीक हुए, तथा श्री महाबीरात् (१०५५) वर्ष पीछे, और विक्रमादित्यसें For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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