SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभवस्वामी, २ श्री सय्यंभवस्वामी, ३ श्री यशोभद्रस्वामी, ४ श्री संभूतविजयजी, ५ श्री भद्रबाहुस्वामी, ६ श्रीस्थूलभद्रस्वामी, यह छहों आचार्य चौदह पूर्वकेवेत्ता थे, श्रीस्थूलभद्रवामी तीस वर्ष गृहस्थावासमें रहे, चौवीस वर्ष व्रत पर्याय, अरु पैतालीस वर्ष युगप्रधान पदवी, सर्वायु निनानवें वर्षका भोगके श्रीमहावीरखामीके पीछे (२१५ ) वर्षे स्वर्ग गये, श्रीमहावीरस्वामीसें दोसौ चौदह वर्ष पीछे आषाढाचार्यके शिष्य तीसरे निन्हव हूये ॥ श्रीस्थूलभद्रस्वामी के बखत में नवनंदों का एकसौ पंचावन (१५५) वर्षका राज्य उछेद करके चाणिक्य ब्राह्मणनें चंद्रगुप्त राजाकों राजसिंहासनऊपर बैठाया, और चंद्रगुप्तके संतानोनें एकसौ आठ वर्षतक राज्य कीया चंद्रगुप्त मोरपालका बेटा था, इसवास्ते चंद्रगुप्तका मौर्यवंश कहते हैं, यह चंद्रगुप्त जैनमत का धारक श्रावकराजा था, यह चंद्रगुप्त, तथा नवनंदका वृत्तांत देखना होवे, तदा परिशिष्ट पर्व, उत्तराध्ययनवृत्ति तथा आवश्यक वृत्तिसें देख लेनां ॥ श्री स्थूलभद्रस्वामीके पीछे ऊपरले चार पूर्व, प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान व्यवछेद हो गये, तथा श्रीमहावीरस्वामीसें दोसौ वीस ( २२० ) वर्ष पीछे अश्वमित्र नामा चौथा क्षणिकवादि निन्हव हुआ, और श्रीस्थूलभद्रजी के समय में बारा वर्षका दुर्भिक्ष (काल) पडा, उस समयमें चंद्रगुप्तका राज था, तथा श्री महावीरस्वामीके पीछे ( २२८ ) वर्ष व्यतीत हुए तब गंग नामा पांचमां निन्हव हुआ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy