SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० मारेंगे, जब उंमानें कहा कि मुझकों मत मारना, तब चंडप्रद्यो तननें कहा कि तुझकों नहीं मारेंगे || पीछे चंडप्रद्योतननें अपने सुभटोकों छाना, उमाके घरमें छिपा रक्खा जब महेश्वर उमाकेसाथ विषय सेवनमें मन होके दोनोंका शरीर परस्पर मिलके एक शरीरवत् हो गया, तब राजाके सुभटोनें दोनोंहीकों मार डाला और अपनें नगरका उपद्रव दूर करा, पीछे महेश्वरकी सर्व विद्यायोंनें उसके नंदीश्वर शिष्यकों अपना अधिष्ठाता बनाया, जब नंदीश्वरनें अपनें गुरुकों इस विटंबनासें मारा सुना, तब विद्यासें उज्जयन नगरके ऊपर शिला बनाई, और कहने लगा कि हे मेरे दासो, अब तुम कहां जाओगे, में सबकों मा रूंगा, क्योंकि में सर्व शक्तिमान ईश्वर हूं, किसीका मारामें मरता नहिं हुं में सदा अविनाशी हुं, यह सुनकर बहुतसे लोक डरे, सर्व लोक वीनती करके पगोंमें पडे, अरू कहने लगे, कि हमारा अपराध क्षमा करो, तब नंदीश्वरनें कहा कि, जो तुम उसी अवस्थामें अर्थात् उमाके भगमें महेश्वरका लिंग स्थापन करके पूजो तो में तुमकों जीता छोडुंगा, तब लोकोनें वैसाही बनाकर पूजा करी, पीछे नंदीश्वर इसी तरे प्राय केह गाम नगरोंमें लोकोंको डरा डराके मंदर बनवाये, तिनमें पूर्वोक्त आकारे भगमें लिंगस्थापन कराके पूजा कराई || यह श्रीमहावीर स्वामीका अविरति सम्यग् दृष्टी श्रावक, इग्यारमारुद्र सत्यकी महेश्वरका दृष्टांत कहा । इसीतरे ६३ शलाका उत्तम पुरुषोंका इहां संक्षेप मात्र अधिकार कहा, विशेष अधिकार देखना होयतो, आवश्यक, कल्पसूत्र, त्रेशठ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy