SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७ नामें पुत्र हुवा । और दूसरी विजया नामें राणी, जिसकी कुखसे ४ स्वप्ना सूचित, सुदर्शन नामें पुत्र हुवा | ये जब युवान अवस्थाकों प्राप्त हुवा | तब अपना वैरी निसुंभ नामा प्रतिवासुदेवको मारके पांचमा वासुदेव, बलदेव इस भरत क्षेत्रमें भया । तीनखंडमें राज्यकिया इसमें वासुदेवका नीला वर्ण, शरीरप्रमाण ४५ धनुष हुवा, अंतमें १ लाख वरषका आयुष्य पूरण करके, छठी नरक पृथ्वीमें गया | और बलदेवका उज्वलवर्ण, शरीर प्रमाण ४५ धनुष हुवा । अंतमें एक लाख ७० हजार वर्षको आयुष्य पूरण करके मौक्ष गया | इति पांचमा वासुदेव, बलदेव, प्रति वासुदेव दृष्टांतम् ॥ अथ ६ पुरुषपुंडरीक वासु० आनंदबलदेवः ॥ अठारमा उगणीसमा तीर्थंकरके अंतरमें, चक्रपुरीनामा नगरीमें महाशिवनामें राजा, जिसके लक्ष्मीनामें पट्टराणी, उसकी कुखसे पांचमा देवलोकसें आया हुवा, सात स्वप्ना सूचित, पुरुष पुंडरीकनामें पुत्रहुवा | और दूसरी वैजयंतीनामें राणी, उसकी कुखसें, चार खम्मा सूचित आनंद नामें पुत्र हुवा । ये दोनुं जब युवा अवस्थाकों प्राप्त भये । तब अपना वैरी, बलीनामा छठा प्रतिवासुदेवको मारके छठा वासुदेव बलदेव हुये । तीन खंडमें राज्य किया । इसमें वासुदेवका नीलावर्ण, शरीरप्रमाण २९ धनुष हुवा । अंतमें ६५ हजार वरषका आयुष्य पूरण करके, छठी नरक पृथ्वी में गया और बलदेवका उज्वलवर्ण, शरीरप्रमाण २९ धनुष हुवा । अंतमें शुभभावसें चारित्र लेके, केवलम्यान ७ दत्त सूरि० For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy