SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कावडिया । ९९ कोडि मसूरिया । ९९ कोडि थइयायत । ९९ कोडि पटतारक । ९९ कोडि मीठाबोला, १ कोडि ८० हजार रासभ । १२ कोडि सुखासण । ६० कोंडि तंबोली, ५० कोडि पखालिया ॥ इत्यादि अनेक प्रकारकी शुद्धी सर्व चक्रवर्तिके समान होती है ॥ इति ॥ अथ नववासुदेव, बलदेवका दृष्टांत लि०॥ ॥१ तृपृष्ट वासुदेवः १ अचल बलदेवः॥ ११ मा भगवान् श्री श्रेयांसनाथ स्वामीके वारे, शोभनपुरनामा नगरमें, प्रजापतिनामें राजा हुवा, जिसके मृगावतीनामें पट्टराणी, जिसकी कूखसें सातमादेवलोकसें आयके, ७ स्वप्नासूचित तृपृष्टनामें पुत्र हुवा ॥ और दूसरी भद्रानामें राणी, जिसकी कूखसें ४ स्वप्ना सूचित अचलनामें पुत्र हुवा । ये क्रमसें वधता थका अपना वैरी अश्वग्रीव प्रतिवासुदेवकों युद्ध में मारके, पहला वासुदेव हुवा । चक्रवर्तिसें आधा अर्थात् इस भरतक्षेत्रका तीन खंडमें राज्य किया । नीलेवर्ण, देहमान ८० धनुषका हुवा, अंतमें ८४ लाख वरषका आयुष्य पूरण करके तृपृष्ट वासुदेव सातमी नरक पृथ्वीमें गया । और बलदेवका उझलवर्ण, शरीर प्रमाण ८० धनुष हुवा, अंतमें भाईका मरण देख वैराग्यसें चारित्र ग्रहण किया, क्रमसें केवलज्ञान पायके ८५ लाख वरपका आयुष्य पूरण करके मोक्ष गया ॥ इति ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy