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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ पद धारक हुये । पुष्पचूडा प्रमुख ३८ हजार सर्व साध्वी भई ॥ ११०० वैक्रिय लब्धिवंत भये ॥ ६०० वादी विरुद पद धारक भये ।। १००० अवधि ज्ञानी भये || ७५० मनपर्यव ज्ञानी भये ॥ १००० केवल ज्ञानी भये || ३५० चवदे पूर्वधारी भये ॥ एक लाख ६४ हजार श्रावक भये || ३ लाख ३९ हजार, श्राविका भई ॥ इत्यादिक बहुत से जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखरजी पर्वतऊपर, १ मासका अनशन कीया । काउसग्ग मुद्राई आत्मगुणके ध्यानसे, सर्व कर्माकों खपायके, मिति श्रावण सुदि ८ के दिन, ३३ साधुवों केसाथ, १०० वर्षका आयुष्य मान पूरण करके, सिद्धि स्थानकों प्राप्त भए । शासनदेव पार्श्व यक्ष, शासनदेवी पद्मावती, राक्षस गण, मृग योनी, तुल राशि, अंतरमान २५० वर्ष, सम्यक्त पायेवाद १० में भवे मोक्ष गया || इति २३ मा श्री पार्श्वनाथ स्वामीका ५५ बोल गर्भित अधिकार: ॥ ॥ अथ २४ मा श्री वर्द्धमानखामी अधिकारः ॥ ब्राह्मण कुंडग्रामनामा नगरमें, कोडालश गोत्रका धरणहार ऋषभदत्त नामें ब्राह्मण हुवा, जिसके देवानंदानामें भार्या भई, जिसकी कुखमें प्राणतनामा देवलोकसें चवके, मिति आशाढ सुद ६ के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रकेविषे भगवान् उत्पन्न भया । तब देवानंदा ब्राह्मणीयें चउदै स्वप्ना देखा ( पीछे ) सौधर्म इंद्र ब्राह्मणोंके कुल में पूर्वकर्मकेयोग भगवान् कों उत्पन्न हुवा देखके, आश्चर्यभूत संबंध हुवा जानके, अपना आग्याकारी हरणेगमेषी देवताकों भेजा, सो हरणेगमेषी देवता आयके देवमाया करके For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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