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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ ४८ हजार श्राविका हुई ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेतशिखरजी पर्वतऊपर १००० साधुवोंके साथ १ मासका अनशनकीया । काउसम्म मुद्राई आत्मगुणके ध्यानसे, सर्व कमौकों खपायके, मिति वैशाखबदि १० के दिन, १० हजार वर्षको आयुष्यमान पूरी करके, सिद्धि स्थानकों प्राप्त भये । शासनदेव भृकुटीयक्ष शासनदेवी गंधारी । देवगण | अश्वयोनि । मेषराशि | अंतरमान ५००००० वर्ष, सम्यक्त पायेवाद तीसरेभवमें मोक्षगये | इनों के वारे हरिषेणनामा १० मा चक्रवर्त्ति हुवा || और २१ मा ( तथा ) २२ मा तीर्थंकर के अंतर में, १९ मा जयनामा चक्रवर्त्ति हुआ || इति २१ मा श्री नमिनाथस्वामी अधिकार संपूर्णम् ॥ ॥ अथ २२ मा श्री नेमिनाथस्वामी अधिकारः । सोरीपुरनामा नगरमें, हरिवंशी, समुद्रविजयनामें राजा हुवा तिसके शिवादेवी नामें पट्टराणी । जिसकी कूखमें, अपराजित - नामें देव लोकसें चवके, मिति कार्त्तिकवदि १२ के दिन, भगवान् उत्पन्न भया । तब मातायें गजादि अग्निशिखापर्यंत १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेशकर्त्ता देखा । पीछे सर्व दिशा सुमिक्षसमें, मिति श्रावणसुदि, ५ के दिन, चित्रा नक्षत्रे, जन्मकल्याणक हुवा ( उसीवखत ) ५६ दिशा कुमारीयों मिलके सूतिका महोच्छव कीया ( पीछे ) ६४ इंद्र मेरुपर्वतपर भगवानकों लेजायके जन्ममहोच्छव कीया । तिस पीछे समुद्रविजय राजायें १० दिन पर्यंत मोंटो जन्ममहोच्छव करके सर्व न्याती गोती प्रजागणकों For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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