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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोजन करायके, सर्वके सन्मुख, श्री अरनाथ कुमर नाम स्थापन कीया । नाम स्थापनका यह हेतु है, कि भगवान जब गर्भमें स्थित हुवा, तब मातायें खममें, सर्व रत्नमई अरदेख्या ( इसकारणसें ) अरकुमर नाम दीया । नंद्यावर्तका लंछनयुक्त, कनकवर्ण, शरीरप्रमाण ३० धनुष हुवा । ३ ज्ञानसहित, महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, चक्रवर्ति पदधारण करके, ६४ हजार स्त्रियांकों परण्या (पीछे) अवसर आये लोकांतिक देवताके वचनसे, मिति मिगसरसुदि ११ के दिन, हस्तनापुर नगरमें, छठतप करके, आवाका वृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंकेसाथ दीक्षा ग्रहण करी ( उसवखत) चोथो मनपर्यवज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठकोपारणो, अपराजितके घरे परमानक्षीरसें हुवो । तीनवर्ष छद्मस्थपणे विहार करके, फिर हस्तनापुरमें आये । वहां छठतप सहित, कार्तिकसुदि १२ के दिन, लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा (उस बखत) चतुर्निकाय देवगणका कीया हुवा समोसरणमें १२ परिषदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के ५० हजार सर्व साधुभये (जिसमें) कुंभ प्रमुख ३३ गणधर पदधारक भये । रक्षिता प्रमुख ६० हजार साध्वी हुई । ७३०० वैक्रिय लब्धिवंत भये ।। १६०० बादी विरुदपद धारकभये ॥ २६०० अवधि ज्ञानीभये ॥ २५५१ मनपर्यव ज्ञानीभये २८०० केवल ज्ञानीभये ॥ ६१० चवदे पूर्वधारीभये ॥ १ लाख ८४ हजार श्रावक हुये । ३ लाख For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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