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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ ( जिसमें ) चक्रायुध प्रमुख ३६ गणधर पदधारक हुये ॥ सुचिप्रमुख ६१६०० साधवीयों हुई ।। ६००० वैक्रिय लब्धिवंत भए || २४०० वादी विरुद धारक भए || ३००० अवधि ज्ञानी भए || ४००० मनपर्यव ज्ञानी भए । ४३०० केवल ज्ञानी भए । ८०० चवदे पूर्वधारी हुये ॥ २ लाख ९० हजार श्रावक हुवा ॥ २ लाख ९३ हजार श्राविका हुई || ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखरजी परबतपर, ९०० साधुवोंकेसाथ, १ मासका अणशन ग्रहण कीया । काउसग्ग मुद्राई आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मोंकों खपायके, मिति ज्येष्ठ वदि १३ के दिन, १ लाख वर्षको आयुष्य पूरण करके, सिद्धिस्थानकों प्राप्त भए । शाशनदेव गरुड यक्ष । शासनदेवी निर्वाणी । मानव गण | हस्ति योनी । मेष राशि | अंतरमान अर्द्धपल्योपम । सम्यक्त पायेवाद १२ मे भवमें मोक्ष गए । इति ५५ बोल गर्भित ५ मा चक्रवर्त्त, १६ मा श्रीशांतिनाथ स्वामी अधिकारः ॥ १६ ॥ ॥ अथ १७ मा श्री कुंथुनाथ स्वामी अधिकारः ॥ गजपुर नामा नगर में, इक्ष्वाकुवंशी, सूरनामा राजा हुवा ( ति - सके ) श्री नामा पट्टराणी । जिसकी कुखमें, सर्वार्थसिद्ध नामा देवलोक चवके, मिति श्रावण वदि ९ के दिन भगवान् उत्पन्न भए । तब मातायें, गजादि अग्नि शिखापर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेश कर्त्ता देखा (पीछे) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, वैशाख वदि १४ के दिन, कृत्तिका नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा | उसी वखत ५६ दिशा कुमारीयों मिलके सूतिका महोच्छव कीया 2 For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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