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॥ नवपदपूजा ॥
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पावें । नव जव शिव जावें । देव नर जव पावें । ज्ञान विमलगुण गावें । श्री सिद्धचक प्रजावें । सवि दुरित समावें । विश्वजय कार पावें । ॥ ९ ॥
॥ ढाल ॥
इच्छा रोधन तप नमो । वाह्याभ्यंतर नेदेजी । तम सत्ता एकत्वता । परपरणित उछेदैजी ।
॥ त्रूटक ॥ उच्छेदकर्म अनादि संतति जेह सिद्ध प गोवरें। योगसंगै निद्रायाहारटाली । जाव यता करें | अंतर मकरत तत्वसाधै स र्श्व संवरता करी । निजात्म सत्ता प्रगटना वें । करो तपगुण चादरी ॥ १० ॥
। ढाल ॥
इमनवपद गुण मंलुं । चउनिक्षेप प्रमा जी । सातनयें जेादरें । सम्मग ज्ञानें जा जी ॥
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॥ त्रूटक ॥ निरधार सेतोगुणें गुणनोकरें जेवऊमान ए । जसु करणईहा तत्वरमणें थायें निर्मल