SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) ॥ नवपदपूजा ॥ ६९ ता दम मयी । शुचि परमखंती मुनींद शम पद । पंच संवर उपचयो । सामायिकादिक नेद धर्मे यथाख्याते पूर्णता । शकषाय श कलुष श्मल नजल काम कश्मल चूर्मता ॥१ ॥ढाल ॥ देश विरतने सर्व विरतजे । गृही यती शनिराम । ते चारित्र जगत जयवंतो। की जे तास प्रणामरे न०॥ १ ॥ तृण पर जे षट खंझ सुख बंझी । चक्रवर्तिपण बरिन ॥ ते चारित्र अखयसुख कारण । ते मैं मनमांहि धरिन रे न० ॥ २ ॥ जवा रंक पिण जेहनें शादरि । पूजित इंद नरेंद। शशरण शरण तेहिज वारू । बरिने ज्ञान आनंद रेन०॥ ३ ॥ बारमास परिजायें जेहनें अनुत्तर सु ख अतिकमिये । शुक्ल शुकल एनिजात्य तेऊपर । ते चारित्र ने नमिये रेन०॥४॥ चयते शाठ कर्म नो संचय । रिक्त करै जे तेह । चारित्र नाम निस्तै नाष्षु । ते बंदू गुणगेह रे । न० ॥५॥ ॥ढाल। जाणी चारित्र तेआतमा । निज स्वना For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy