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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८ www.kobatirth.org ॥ नवपदपूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) ॥ ढाल ॥ खंतिजुवा मुत्रिजुवा | प्रज्जव मद्दवजुता जी । ससोय किंचना । तव संयम ताजी ॥ १ खंति० ॥ गुणर ॥ त्रूटक ॥ जे रम्मा ब्रम्ह सुगुप्तगुता । सुमति सुमता श्रुति धरा । स्यादवाद वादें तत्ववादक । प्रा त्म पर वीजंजन करा । जव नीरू साधन धीर शासन । वहनधोरी मुनि वरा । सिद्धांत वा यन दान समरथ नमो पाठक पदधरा ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ 1 द्वादशांग सिज्जाय करे जे । पारग धार गतास | सूत्र रथ विस्तार रसिक ते । नमोउ वज्काय उलासे रे न० ॥ १ ॥ अर्थ सूत्र नें दा न विनागें । आाचारज उवज्जाय । नवतिन्ये जेलहे शिवसंपद। नमियेते सुपसायें रे न० २ मूरख शिष्यनिपायें जेप्रभु | पाहणनें पल्लव श्राणे । तेउवाय सकल जन पूजित। सूत्र For Private And Personal Use Only रथ सबजाणेरे ज० ॥ ३ ॥ राज कुमर स रिखागण चिंतक । श्राचारज पदयोगें । जेउव काय सदातेनमतां । नावें नवऩयसोगें रे न०
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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