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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१) www.kobatirth.org ॥ नवपदपूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ चकचूर जेणे । जला जच्य नवपद ध्यानेन तेणे। करी पूजना जव्य जावें त्रिकालें सदा वासियो पातमा तेण कालें ॥ ४ ॥ जिके तीर्थकर कर्म उदये करीनें । दिये देशना ज च्यनें हित धरीने । सदा पाठ महापाठिहारे समेता । सुरेस नरेसें स्तव्या ब्रम्हपूता । कस्था घातिया कर्म च्यारे लग्गा । नवोपग्रही च्यार में जे विलग्ग || जगत् पंच कल्याण के सौख्यामें । नमो तेह तीर्थं करा मोक्ष कामें ॥ ॥ ढाल ॥ तीरथपति रिहा नमुं धर्मधुरंधर धीरो जी । देशना मृत बरसता निज वीरज वक वीरो जी ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ त्रूटक ॥ वर प्रखय निर्मल ज्ञान जासन सर्व जाव प्रकाशता । निज शुरू श्रद्धा श्रात्म नावें चर ण थिरता वासता । जिन नाम कर्म प्रज्ञाव अतिशय प्राति हारज शोजता । जग जंत करुणावंत जगवंत नविक जननें थोजता ॥ ॥ दोहा ॥ परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी उर
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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