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॥नं० श्व० पू०॥
(२)
१॥ जे नवि सुरनितरगंधव्य करी । सुरनि तनुकरै जिनराज केरो ॥ तेहनी चंद करा मल यशवासना । सुरनितम करइ सऊजग घणेरो न०॥ २ ॥ एमवर सुरनितर द्रव्य सेंसुरवरा । घरचकरि जगपती बिंवसारा ॥ परमशुन्न नावना लावता गावता । विशद जिनवर गुणा अतिशपारा॥३॥ सकलसुर गणमिलीएम जंपेंमुदा । जोसुरा आज जिन राज शरची ॥ विरति गुण रहितनिज जन्म सफलो कियो । सुमति संयोग दुरमति विगू ची न० ॥ ४ ॥ दुतियइम पूज करतांहरै न व्यनो । पापघनताप शा अपारा ॥ सरग निरवाण पुरपंथ प्रगटीकरण । विशदशिव चंदकरगण उदारा न० ॥ ५॥
॥काव्य ॥ मृगमदोज्वल कुंकुम चंदनै । श्चिर तनां तर तापनिकंदनः ॥ जिनवरा नघता मसना स्करान् । स्वहितकृध्धिये चसमर्थयेः ॥६॥ नही श्रीअर्ह परमात्म० प्रणत० कठिन० नं दीश्वरा०रिषनानन चंद्रानन वारिषेण वर्ष माना ष्टोत्तरैकशत शाश्वत जिनें० चंदनं य
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