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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACI ॥ पूजा ॥ | स7 जी तिहां सुरपति श्रावीरह्या॥ ॥ टक ॥ आविया सुरपति सर्बजगत कलश श्रेणि बणाअए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ अषधि सर्व वस्तु अणावए । अन्नू यपति तिहां हु कम कीनो देव कोडा कोडिनें । जिन मज नारथ नीरल्यावो सबै सुर करजोडिनें ॥ ॥ ढाल शांतिने कारण इंद कलशा नरै ॥ आत्मसाधन रसी देवकोडी हसी। उल्लसीने धसी खीरसागर दिशि।पउमदह आदि दहगं ग पमुहा नई । तीर्थजलअमल लेबा नणी ते गई। जाति अङ कल करि सहस अठोत्त रा॥बत्र चामर सिंहासणे शुलतरा । उप गरण पुष्फचंगेरि पमुहा सबें॥ आगमें ना सिया तेम आणी ठमें। तीर्थ जल नरिय क रिकलश करि देवता।गावता नावता धर्म उन्नतिरता । तिरिय नर अमरने हर्ष उपजा वता धन्य अमसक्ति शुचिनक्ति इमनावता समकित वीज निज आत्म आरोपता । कल श पाणीमिसै नक्ति जलसींचता। मेस सिहरो - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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