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॥ नं० ० पू० ॥
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॥ ढाल ॥
जिनमंदिर युत रतिकर विमला। पूरब दिशितेरस सऊञ्श्चला ॥ यह रीतें परत्रिणदि शिजाणो । इम बावन्नगिरी इवखाणो ॥ ४ ॥ ॥ उल्लालो ॥
इवखाणशतयोजनसुदीर्घा बऊत्तरयोजन प्रमा । प्रति उन्नता पंचास योजन विस्तरा जिनगृह समा ॥ शत एक अष्टोत्तर प्रमाणा पंचात धनुरुन्नता । इणरीति प्रति प्राशाद प्रतिमा जाणिये बिंबशाश्वता ॥ ४ ॥ ॥ दोहा ॥
ऋषजानन चंद्रानना । वारिषेण व्रधमा न || एजाणो शाश्वत सकल | जिनप्रति मा निधान ॥ ३॥ सुरगिरि शिखरे जिनतणों । जिन न्हव णोत्सव सार ॥ करिके नंदीश्वर जई । ह
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रिगण विबुध उदार ॥ ४ ॥ अनुन रसयुत जक्तिधर । हृदय सरोज मकार ॥ इणपरि शाश्वत 'जिनतणों । करें पूजति सार ॥ ५॥ पूरबदिशि अंजनगिरी । मंदिरगत जि