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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३२ ॥ विस्था० प्रा० ॥ (२०) बीसपदकी बिबिध पूजन विधितणीं रचनां करी ॥ ५ ॥ इतिश्री बिंशतिस्थानकस्तुति ॥ जियाचतुरसुजाणनवपदके गुणगायरे ॥ ॥ इस चाल में छारती ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिया विंशतिधान मंगलयारति गायरे सुमतिप्रिया कहैं चेतनपतिकों निसुण बचन मननायरे पि० ॥ १ ॥ यदि निजगुण परि णति तुमचहिये । तिणको एह उपायरे पि० रिहंत सिद्ध आचारज पाठक साधु सकल समु दायरे पि० ॥ २ ॥ इत्यादिक विंशति पद समरण जवनय हरण विधायिरे । एह आरती तिवारती । अनुपमसुर सुखदाय रे पि० ॥ ३ ॥ जैसेंनगतें करय प्रारती । स कलसुरा सुररायरे ॥ तैसेंजवितुमे करोारती एपदगुण चितलायरे पि० ॥ ४ ॥ पंचप्रदी पसें करयचारती । जेनितचित उलसायरे ॥ तेलही पंच चिदानंद घनता । अचलअमर प दपायरे पि० ॥ ५ ॥ पंच प्रदीप खंति ज्योतैं । दुर्मति तिमिर बिलायरे ॥ एहछा रती तुरत तारती । नवजल निपतित धा यरे पि० ॥ ६ ॥ पदजिन हरष तणी एकर For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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