SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ विं० स्था० पू० ॥ (५) क थविर | लोकोत्तर अणगार | पंचम पद में जानिये । द्वितीय थविर अधिकार ॥ २ ॥ ॥ राग सारंग ॥ नित नमिये थविर मुनी सरा । पंचमहा व्रत धारक वारक । कुमति जगत जन हित करा नि० ॥ १ ॥ संयमयोगें सीदत बालक ग्लाना दिक सऊ मुनिवरा । एहनें उचित सहा य दियते । वारे एहनां दुखजरा नि० ॥ २ ॥ पर्यय वय श्रुत त्रिविध ए धविरा । वीस स साठ समोपरा । वयधर समबया धिक पा ठक | एह थविर गुण आगरा नि० ॥ ३ ॥ तीजे अंग कह्या दस थविरा । रत्न त्रयीनां गुण धरा । ते इह निर्मल नाव ग्रहिया न विक सरोज दिवाकरा नि० ॥ ४ ॥ कीरजल धिराम प्रतिहि गंजीरा । सुरगिरि गुरु धीर For Private And Personal Use Only ज धरा । वारणागत तारणता धारा । ज्ञान विमल जल सागरा नि० ॥ ५ ॥ श्रुत तप धीरज ध्यान धरणतें । दुव्यादिक ज्ञाता व रा । तेह स्वरूप रमण कह्या थविरा । नही य धवल केशांकुरा निं० ॥ ६ ॥ एह थविर पद सेवी जगते । पदमोत्तर बसुधेसरा । पद
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy