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________________ SM Mahavam A kende Achan Kailas Gyamandi शांतिना- तेहने घर पण लक्ष्मीन माय; इम जिहां बालारे सापगलां ठवेरे, निधि प्रगटें सहु सुखिया थाय पंचक० थना. सु०॥ ९॥ वहुने मानेरे ससरो भलीपरें रे, राजा पण चित्त विस्मय थाय; एकदिन आव्यां स्तवन. धर्मघोष सुरीवरा रे, राजा प्रमुख ते वंदन जाय सुं० ॥ १० ॥ सुंदरि पूछे कहो कुण कारणे रे, पग , ॥२४॥ पग पामुं रुद्धि रसाल; सूरि कहें साचो पूर्वभवे तें कयों रे, अक्षयनिधि तप थइ उजमाल सुं०॥११॥ | ढाल-॥२॥ माता जशोदा तमारो कान, मही वेचंता मागे दान ॥ ए देशी ॥ अथवा चोपाइ हैनी देशी ॥ खेटक पुर संयम अभिधान, शेठ प्रिया ऋजुमति गुणवान; ऋजुमति तप राती रहें, ज्ञान भक्ति सुख संपद लहें ॥ १॥ रयणावली कनकावली करें, एका वली विधिएं उच्चरे; पाडोशी वसुशेठे वरी, सोम सुंदरी बहू मत्सर भरी ॥२॥ पुण्यवती तप रती बहु, ऋजु मती प्रशंसे सहुः सोमसुंदरी सुणी निंदा करे, डाकणि परें छल जोति फरें ॥३॥ भुख्यो ब्रह्म बगाचल ढोर, ४ चांप्यो नाग नसंतो चोर; रांड भांडने मातो सांढ, ए सांतेथी उगारिए मांड ॥ ४॥ लाग्युं घर | ॥२४॥ संयम तणुं, सोम सुंदर चित्त हरव्यु घj, नारी प्रभावें नबली एक छडी, वलि एकदिन घर ॐASSAGACEANSAR For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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