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________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. 8. Kailas a mendi अवतर णिका. शांतिना-४ आवश्यकता छे. आ स्तवनोमां लगभग बधां स्तवनो रसिक तेमज-मनोहर होवाथी भिन्न भिन्न राग युक्त गावाथी. थना. चित्तमां परम आह्लाद उत्पन्न करे तेवा छे अने आपणा मनोमंदिरमा जिनेश्वर प्रति दृढ श्रद्धा उत्पन्न करावी इष्ट कार्य परम पदनी प्राप्ति करवामां साधन भूत छे माटे सर्वेने विज्ञप्ति करवामां आवे छे के आवा उत्तम आचार्यों कृत स्तवनो गावामां सर्वे ए लक्ष्य राखतुं जोइए स्तवनो कंठःस्थ करी मात्र प्रभु आगलके प्रतिक्रमण क्रियामां बोली जवा मात्रथी उद्देश ॥ २ ॥ साफल्य कारक थतो नथी परन्तु साथे स्तवनोमां रहेल उत्तम भाव-स्वरुप समजी हृदयमा उतारवाथीज अभीप्सित सिद्धि | संपादन करी शकाय छे शास्त्रकारो ए कहुं छे के “यादृशी भावना यस्य, सिद्धिर्भवति तादृशी” (जेओना मनो| मंदिरमा जेवी जेवी भावनाओ प्रवर्ते छे तेवी तेवी काय सिद्धि थाय छे) आनी अंदर पूर्वाचार्योकृत (४६) स्तबनो तथा (१) श्रीमहावीर तप नमस्कारनो समावेश करवामां आव्यो छे. आ आ पुस्तक छपाववामां तपगच्छना पुज्यपाद १०८ श्री गुरुणीजीमहाराज श्रीविजयश्रीजीना शिष्या साध्वी जी श्रीखान्ति श्रीजीना उपदेशथी मुंबई निवासी झवेरी मोतीचंद रुपचंद तरफथी अर्धे आर्थीक सहाय अने अर्धे आर्थीक सहाय सुरतX| निवासी कीनारीवाला डायाभाइ कालिदास अस्तक-तरफथी बाबुभाइ अभेचंदना स्मरणार्थ बन्ने श्रेष्ठि वरोए आर्थिक सहायता | अपीछे जेथी तेओनो उपकार मानवामां आवे छे मळी छे अने आप्रत सर्व साधु साध्वी अने ज्ञानभंडारने भेट आपवामां आवे छे. पुस्तक मळवा- ठेकाणुं झवेरी ) झवेरी ठाकोरभाइ मुलचंद मु. सुरत ठे० देशाइ पोळ. मोतीचंद रुपचंद मु० मुंबइ. ली. श्री श्रमण संघोपासक. ठे० झवेरी बजार. ) पुरुषोत्तमदास जयमलदास महेता मुं० सुरत ठे० पंडोळनी पोळ. EXAAS For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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