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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री वैमानिक जिन મચ્છુકા www.kobahrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेटलारे घंटानाद सुहामणा; पंचाश कोडीरे चालीशलाख बिंब मान ए, सनत्कुमार त्रीजेरे बारलाख विमान ए ॥ त्रूटक — विमानमां बारलाख जिनघर वारलाख घंटानाद ए, एकवीसकोडीः साठीलाख जिनबिंब पूजे परमानंद ए; धनुष्य पंचशत देह उन्नत सप्तकर तनुमान ए, बेठा पद्मासन्न पंचरंग देहवान भगवान ए ॥ २ ॥ ढाल पूर्वली - महेंद्र चोथेरे विमान तिहां आठ लाखरे, प्रासाद तेटलारे घंटानाद जिन भाखीए; चौदकोडीरे चालीसलाख जिनवर तणी, मोहन मूरतिरे सुरत अति सोहामणी ॥ त्रृटक — सोहामणी ब्रह्मदेवलोके चार लाख विमान ए, प्रासाद चारलाख घंटानादा चारलाख सुजाण ए; सातकोडी वली वीसलाख जिनपडिमा जयकार ए, छठ्ठे लांतक | विमान पंचास सहस्र संख्या धार ए ॥ ३ ॥ ढाल पूर्वली — जिनधामरे पंचास सहस्र वखाणीए, घंटानादरे सहस्र पंचास मन आणीए; नेउ लाखरे जिन पडिमा परमाणरे, ऋषभ चंद्राननरे वारिषेण वर्द्धमानरे ॥ त्रूटक — विमान सातमें शुक्रकल्पे, चालीससहस्र सुरधाम ए, चालीस सहस्र प्रासाद संख्या घंटानाद अभिराम ए; बहोंतेरलाख जिनबिंब मान आठमें सहस्रार ए, For Private And Personal Use Only स्तवनम् ॥१८८॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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