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________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. Acharya Sh Kailasagar Gyanmandi अर्थ सहित संयम अनंत भाग वृद्धि १ असंख्य भाग वृद्धि २ संख्यात भाग वृद्धि ३ स्थानक जेटलां पूर्वे गयांछे।। श्रणीनुं ते सर्व संयम स्थानक परीने नीपजावीने पछी असंख्यात गुण वृद्धिनुं संयम स्थानक हे अगर्व ? स्तवनम् एक आवे ॥ एटलेपाश्चात्य अनंतर संयम स्थानकमां नेटलां अविभागछे ॥ असंख्य लोकाकाश प्रदेश प्रमाण गुणा करतां जेटला गुणाथाय तेटलांप्रथम असंख्य गुण वृद्धि स्थानमा अविभाग वघे॥१५॥ KI गाथा-चउरंतर चउरंतरेजी, स्थानक कंडक मेय; असंख्यात गुण रद्धिनांजी, पंडीत वीर्य वरेय० गुणो दधि० मेरु०॥ १६॥ M भावार्थः-आगल पण चार चार वृद्धिने विचाले एक एक असंख्यात गुण वृद्धिनुं स्थानक निपजे ॥ एटले असंख्यात गुण वृद्धिनां प्रथम स्थान पछी अनंत भाग वृद्धि १ असंख्य भाग वृद्धि २ संख्यात भाग वृद्धि ३ संख्यात गुण वृद्धि ४ एवं चार वृद्धिनां स्थान कर्या पछी असंख्य गुण वृद्धिनुं बीजं स्थान आवे ॥ एरीते चार चार वृद्धि विचाले एक एक स्थान करतां कंडक मात्र थाय ॥ एटले षट्वृद्धि मांहिं असंख्य गुण वृद्धि रूप पांचमी वृद्धि पूरी थइ । असंख्यात गुण| 4% ARHARMAC-64 For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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