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________________ R स्तवनम् श्रीज्ञान- दोरा खडिआ डाबी; जरम वाड तोरण चंदुवो, पक्कवान पांच सूद्वाने दओ ॥ जिननेमी॥१०॥ पंचमी ढाल पूर्वली-पूजा रचावो जिन तणीरे, दीवी कलस गार; अंगहणा, ठाली भली रे, चंदन में घनसार; त्रुटक-चंदन ने घनसार उखेवी, घंट नाद जालर रकेबी; एम सघली पांच पांच X मेलीजें, रातीजगें उजमणुं कीजे ॥ जिननेमी ॥ ११॥ ढाल पूर्वली-सक्ति नही मास मासनी रे, वर्ष वर्ष प्रते एक; वरदत्त गुणमंजरी परेंरे, आराधो धरीय वीवेक; त्रुटक-आराधो अति राग धरीने, रोग सोग सर्व जाय टालीने; सुध बुध सुत संपत सारी, राग धरी सेवो नर नारी ॥ |जिननेमी ॥ १२ ॥ ढाल पूर्वली-वरदत्तें पूर्व भवेरे, ज्ञान उपर धस्यो द्वेष; दिन दश दोय मुनि रह्यो रे, आलोयो पाप नरेष; त्रुटक-आलोयो नही कर्म संयोगें, तेह मुर्खनें व्याप्यो रोगे; गुरु वचने आराधे नाण, उद्यमी पोहतो स्वर्ग वीमान ॥ जिननेमी ॥ १३ ॥ ढाल पूर्वली-तिहांथी च्यवि जंब द्विपमा रे, पूर्व विदेह मोजार वरदत्तनो जीव ते सहीरे, सुरसेन नाम कुमार; त्रुटक-सूरसेन श्रीमंधर वांदी, देशना सांभली मन आणंदी; राज छंडि ग्रह्यो संयम भार, केवल लही पोहता मुक्ति मोजार ॥ जिननेमी ॥ १४ ॥ ढाल पूर्वली-गुणमंजरी पूर्वभवे रे, पावके श्चाल्युं ज्ञान; तेह ROTESNES RECORESARIES For Fate And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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