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________________ अर्बुदाच-ध्यान; तेत्रीसकोडि सुर आवें तिहां रे, धरे सुमति मति ग्यान ॥ रुषिश्वर ॥ ६ ॥ यात्रा बारे वर्षे | चैित्यपलउत्पत्ति मिलेरे, गौतम रुषिनी सार; वशिष्ट रुषि देखो आदरे रे, तप जप शील अ रिपाटी ॥१५५॥ उंची गुफा मांहि अति भली रे, अर्बुदाचलनी राणी; नयणे हरखें निरखसें रे, सफल जन्म तस स्तवनम् जाणि ॥रुषिश्वर ॥८॥जगमाता श्रीदेवीनो रे, रसीओ जोगी एक; जगमाताने इम कहेरे, मुज |परणा विवेक ॥ रुषिश्वर ॥ ९॥ बार पाज एक रातिमां रे, न बोले कूकडा जाम; पहिले पाज सह बांधवी रे, पुत्री परणावो ताम ॥ रुषिश्वर ॥ १०॥ रसिओ निरसीओ कीयोरे, कूकडा बोल बोलावि; बुद्धि बलें तेहरावीयो रे, श्रीदेवी घरे आवि ॥ रुषिश्वर ॥ ११ ॥ विमलसाहने आदरें रे, देखाडी 5 शुभ ठाम; देहरो कराव्यो अतिभलो रे, दीठा आणंद धाम ॥ रुषिश्वर ॥ १२॥ | दुहा-नमवि श्री गुरु सारदा, अविचल सुख ये राज; आबुचैत्य परिवाडि कहुं, भवजल तरण ||॥१५५॥ |जहाज ॥१॥ आबु गिरिवर उपरे, सुरवर कोडि तेत्रीस; वली विशेषे तिहां रहे, जगतारण जग SOCCASAHARSA For Private And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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