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________________ श्रीचतुदशगुणस्थान शांतिनाथ. स्तवनम् गीरे गुणठाणुं चौदमुं, पंच अक्षर लघु स्थिति जेह; योग रंधीरे शैलेशी करण करी, सर्व कर्म छेदीरे एह ॥ सुगुण०॥ ८७ ॥ अजर अमर रे निकलंक थई, पाम्या मोक्ष सुठाम; अष्ट गुणेरे करी शोभे सदा, ते सिद्ध करुं प्रणाम ॥ सुगुण०॥ ८८॥ कह्या गुणठाणारे ए व्यवहारथी, निश्चय एक चेतन अभेद; शुद्ध नयनेरे जे समझे सही, न रहे रे तेहने मन खेद ॥ सुगुण० ॥ ८९ ॥ च्यार गुणठाणारे जे कह्या आदिनां, ते लाभे देव नारकीरे मोझार; देश गुणव्रत सहित पांच गुणठाणा लगि, गर्भज तिर्यंच मांहि विचार ॥ सुगुण०॥९०॥ चउद गुणठाणारे लाभे मनुष्यमां, ते पण चोथे आरे रे जोय; पंचम |आरेरे षटू सत्तम लगे, ते पण कोइकमां रे होय ॥ सुगुण ॥ ९१॥ ___ कलश-राग धन्याश्री ॥ एणीपरे गुणठाणा कह्या, कर्मग्रंथ जिन आगम जोइरे; ए मांहि असत्य कहेवाणुं होय जे काइ, होजो मिच्छामिदुक्कड सोइरे ॥९२॥ सुण सुण शांतिजिणेश्वरुपए आंकणी॥ एक वीनतडि अवधारोरे; तुझ शरणागते आवीयो, भव भ्रमण भय निवारुरे ॥ सुण सुण ॥ ९३ ॥ १ पांच हस्व अक्षर। For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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