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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥९॥ www.kobahrth.org. चोसठ इंद ललना ॥ समवसरणरचना रची, ललि ललि प्रणमें जिणंद ललना ॥ १ ॥ केवल महोत्सव सुर करें, कांइ आणी अधीक स्नेह ललना ॥ ए आंकणी ॥ आठप्राति हार्ये शोभतां, मुला तिशयें चार ललना, गुप्त आहार निहार सदा, रुधीर गोखीर समधार ललना ॥ के० ॥ २ ॥ श्वास कमल अंगे स्वेद नहिं, करम खपावी इग्यार ललना ॥ ए गुण वीस अमर कीया, चोत्रीश अतिशय धार ललना ॥ के० ॥ ३ ॥ समव सरणमें वीराजतां, शांती जीणंद दयाल ललना ॥ गुण अनंत गुण धारतां, वांछतां धर्म मयाल ललना ॥ के० ॥ ४ ॥ मेह मधुर गंभीर ध्वनी, पीवे चातुक भवि धार ललना | सोलमा स्वामी चक्री पांचमो, पून्य प्रकृति नो नहिं पार ललना ॥ के० ॥ ५ ॥ दुषण समवसरण दीसा, लागत नहींअलगार ललना ॥ नर तिरि निरिया मरावली, कोडा कोडि परिवार ल० ॥ के० ॥ ६ ॥ आत पत्र प्रभु शीर छाजे, भामंडल झलकंत ल० ॥ त्रण गढ नी रचना करी, च्यार स्वरूपें पेखंत ल० ॥ ७ ॥ लोका लोक प्रकाशंती, गाजतिं नीशुणंत ल० ॥ अन्नाण तिमिर अनादि नो, दुःख सयल हरंत ल० ॥ के० ॥ ८ ॥ वन पालक श्रवणें सुणी, For Pitvate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच क० स्तवन. ॥ ९॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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