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________________ SM Mahavam A n Kenda CS Kamendi चोवीश जिन 5-ॐॐॐॐॐ संवच्छरी, प्रभु लीओ संयम भार; चार सहस्र राजाशें, चैत्र वदि आठम सार ॥४॥प्रभु विचरेडा आंतरार्नु महीयल, वर्ष दिवस विणा हार; गज रथने घोडा, जन दीए राज कुमारी; प्रभु तो नवि लेवे, जोवे स्तवनम् शुद्धो आहार; पडी लाभ्या प्रभुजी,श्री श्रेयांस कुमार ॥ ५॥ फागण अंधारि, अगीयारस शुभ ध्यान; प्रभु अट्रम भक्ते, पाम्या केवल ज्ञान; गढ त्रण रचे सुर, सेवा करे कर जोड; चक्र रत्न उपन्यु, भरत तणे मन कोड ॥६॥ मारुदेवा मोहे, दुःख आणे मन जोर, मारो ऋषभ सहे छे, वनवासी दुख घोर; तव भरत पयंपे, त्रीभुवन केरुं राज; आवो आइजी तमने, देखाडुं हुं आज ॥७॥ गजरथमां बेसाडी, समवसरणनी पास; भरतेसर आवे, प्रभु वंदन उल्लास; सुणी देवनी दुंदुभी, उल्लसित आणं| दपुर, आव्यां हर्षनां आंसु, तिमिर पडल गयां दूर ॥॥ पूत्रनी ऋद्धि देखी, एम चिंते मन मात; धीक्| धीक् कुडी माया, कीना सुत कीना तात; एम भावना भावतां, पाम्यां केवल ज्ञान; तत्क्षण मारुदेवा, त्यां लह्यां निर्वाण ॥ ९॥ धन्य धन्य एप्रभुजी, धन्य एहनो परिवार; लाख पूर्व चौराशी, पाली आयु उदार; माहा वदि तेरस दीने, पाम्या सिद्धर्नु राज; अष्टापद शीखरे, जय जय श्री जिनराज ॥१०॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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