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________________ स्तवन. पार्श्व. श्रीगोडी- ढाल-३-त्रीजी ॥ पंचमी तप भणुंए, जन्म सफल करुंए॥ए देशी॥सा काजल कहेवात, मेघा भणी दिनराति; सांभलि सदृहे ए, वलतुं इम कहे ए॥१॥ जाइश हुं प्रभाते, साथकरी गुज॥ ९६॥ कराते; शकुन भले सहि ए, केतो चालवू वही ए ॥ २॥ धनघणुं लेइ हाथ, परिवार करी साथ; कंकु है तीलक कीओ ए, श्रीफल हाथे दीओ ए ॥३॥ लेइ उंट कतार, आव्यो चौटा मोझार; कन्या || सन्मुख मली ए, करती रंगरली ए॥४॥मालिण आवी जाम, छाब भरीने ताम; वधावे शेठजी| भणीए, आशीष आपे घणी ए ॥ ५॥ मच्छयुग्म मल्यो खास, वेद बोलतो व्यास; पत्र भरीयो| गणो ए, वृषभ हाथे धणीए॥६॥डावो बोल्यो सांढ, दधीनुं भरीउं भांड; खरडावोखरोए, लोककहे हीये धरो ए॥७॥ आगल आव्या जाम; मारग वुव्यां ताम; भैरव जमणी भली ए, देवडावी वली वली ए॥८॥ जमणी रुपारेल, तोरण बांधे तिणवेल; नीलकंठ तोरण कीओ ए, उलस्युं अति हियु ए ॥ ९॥ हनुमंत दीधीहाक, मधुरो बोले काग; लोक कहे सहु ए, काम होस्ये बहु ए॥१०॥ अनुक्रमे चाल्या जाय, आव्या पाटण मांहिं; उतारा भला किया ए, शेठजी आवीयाए॥११॥ SHIRECE0EOSALAMALAMSAX For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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