________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
m
-
-
-
-
-
स्वकीय
-
जो कुछ समझ पाया
जैन परम्परा के आगम और दर्शन को यथार्थ अर्थ में, समझने के लिए प्रमाण, नय, निक्षेप, अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंगी को समझना, परम आवश्यक है । यह कार्य न्याय-शास्त्र एवं तर्क-शास्त्र को समझे बिना सम्भव नहीं है। केवल श्रद्धा के बल पर, व्यक्ति स्वयं तो कदाचित् समझ भी जाए, परन्तु अपने मान्य आगम एवं दर्शन के मर्म को दूसरे व्यक्ति के गले उतारने में, न्याय तथा तर्क का परिबोध अनिवार्य है ।
न्याय और तर्क के आकर-ग्रन्थ, हिन्दी भाषा अथवा अन्य लोक भाषा में सुलभ नहीं हैं। न्याय-विद्या और तामृत का पान करने के लिये प्राकृत भाषा और विशेषतः संस्कृत भाषा का परिज्ञान परम आवश्यक है, साथ ही दोनों भाषाओं के बोध के लिये दीर्घ काल तथा अतिश्रम भी अपेक्षित है।
काफी लम्बे समय से मैंने इस कठिन समस्या के सम्बन्ध में, अपने मन में मन्थन किया। कुछ सज्जनों की प्रेरणा मिली कि आप इस विषय पर संक्षिप्त तथा सरल भाषा में कुछ अवश्य लिखें। विशेष रूप में जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं साहित्य-सेवी श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' का विशेष आग्रह रहा । उसका ही यह प्रतिफलन है, जो पाठकों के सामने है।
प्रस्तुत पुस्तक में जैन न्याय के और तर्क-पद्धति के समस्त अंगों को संक्षेप में समेटने का लक्ष्य रहा है । गूढ विषय की गुरु-ग्रन्थियों को स्पष्ट
For Private and Personal Use Only