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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पाश्चात्य तर्कशास्त्र ॥ तर्क को परिभाषा तर्क शास्त्र, तर्क का एवं न्याय की पद्धति का शास्त्र है। तर्क क्या है ? अनुमान ही तर्क है । अनुमान उस ज्ञान को कहते हैं, जो प्रत्यक्ष ज्ञान के बाद में होता है। पहले ज्ञात तथ्य का प्रत्यक्ष होता है, बाद में अज्ञात तथ्य का ज्ञान होता है । जैसे कि किसी घर से धूम निकलते देखकर आग का अनुमान करते हैं। धूम प्रकट है, उससे अप्रकट आग का ज्ञान करते हैं। क्योंकि धूम और आग में व्यापक सम्बन्ध है। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है। सभी मनुष्य मरण-शील हैं। सभी शिक्षक मनुष्य हैं। सभी शिक्षक मरण-शील हैं। इसमें मनुष्यत्व ज्ञात तथ्य है। इस ज्ञात तथ्य मनुष्यत्व को सभी शिक्षकों में देखकर, इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सभी शिक्षक मरणशील हैं। क्योंकि मनुष्यत्व एवं मरणशीलता में अटूट सम्बन्ध है । अतएव अनुमान, प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित एक प्रकार का परोक्ष ज्ञान है। शास्त्र के दो रूप होते हैं-विधि और निषेध । जो उचित कार्य करने की आज्ञा दे और अनुचित कार्य करने का निषेध करे, वह आदर्शवादी शास्त्र है। धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र आदर्शवादी शास्त्र हैं। क्योंकि इन शास्त्रों में हम 'चाहिए' की भावना से अनुप्राणित होते हैं। मनोविज्ञान तथा भौतिक विज्ञान, मन और जड़ द्रत्य का वर्णन करते हैं। ये 'चाहिए' से नहीं, 'है' से सम्बन्धित होते हैं । अतः मनोविज्ञान तथा भौतिक विज्ञान यथार्थवादी शास्त्र हैं। तर्क-शास्त्र यथार्थवादी ज्ञान-मूलक शास्त्र है, क्योंकि इसमें अनुमान के यथार्थ रूप का अध्ययन होता है । स्टेबिंग के अनुसार “तर्क शास्त्र ( १६३ ) For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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