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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दार्थ-विवेचन | १५३ के लिए ध्वनि इस शब्द का प्रयोग किया है। अतः काव्य-शास्त्र के विद्वान् ध्वनि शब्द का प्रयोग करने लगे। स्फोटवाद __ वैयाकरणों का मुख्य सिद्धान्त स्फोटवाद है । स्फुटय ति, प्रकाशयति, अर्थमिति स्फोटः। इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिससे अर्थ की प्रतीति हो, उसे स्फोट कहते हैं। श्रोत्रग्राह्य ध्वनि अर्थात् वर्ण आशुतर विनाशी होने के कारण एक वर्ण के उच्चारण के बाद जब द्वितीय वर्ण का उच्चारण किया जाता हो, तब प्रथम वर्ण नष्ट हो जाता है। वर्ण-समूह की एक साथ उपस्थिति कैसे हो सकती है ? इसका समाधान करने के लिए वैयाकरणों ने म्फोट वाद की परिकल्पना की। उनका कथन है, कि पूर्व पूर्व वर्गों के अनुभव से एक प्रकार का संस्कार उत्पन्न होता है। उस संस्कार के सहकृत अन्त्य वर्ण के श्रवण से पद की प्रतीति होती है, उसे ही स्फोट कहते हैं। वह ध्वन्यात्मक स्फोट रूप शब्द नित्य एवं ब्रह्म स्वरूप है । अतः व्याकरण शास्त्र में स्फोट की अभिव्यक्ति शब्द से होने के कारण वैयाकरण स्फोट के व्यजक शब्द के लिए ध्वनि का प्रयोग करने लगे । आचार्य आनन्दवर्धन तथा आचार्य मम्मट ने भी उनका अनुसरण किया। तीन प्रकार की शक्ति ___ काव्य-शास्त्र में, तीन प्रकार की शक्ति हैं---अभिधा, लक्षणा और व्यजना। इन शक्तियों के द्वारा ही शव्दबोध अर्थात् शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता है। इसको वाक्यार्थ-बोध एवं वाक्यार्थ-ज्ञान भी कहते हैं । आचार्य मम्मट ने अपने काव्य प्रकाश में, तीन प्रकार के शब्द और तीन प्रकार के अर्थ माने हैं । तीन प्रकार के शब्द इस प्रकार हैं-वाचक, लक्षक और व्यञ्जक । तीन प्रकार के अर्थ इस प्रकार हैं-वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य । तीन प्रकार के शब्दों से तीन प्रकार के अर्थों के ज्ञान के लिए अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जना तीन प्रकार की शब्द शक्तियाँ मानी हैं। जैसे कि 'गंगायां घोपः'अर्थात् गंगा में घोष अर्थात् आभीर पल्ली है । अहीरों का गाँव है। एक ही गंगा शब्द, प्रवाह रूप अर्थ का वाचक, तीर-रूप अर्थ का लक्षक और शैत्य-पावनत्व रूप अर्थ का व्यञ्जक होता है। वाच्य अर्थ अभिधा के द्वारा, लक्ष्य अर्थ-लक्षणा के द्वारा और व्यंग्य अर्थ व्यञ्जना के द्वारा प्रतिपादित किया जाता है। यहाँ वाच्य अर्थ, प्रवाह है । लक्ष्य अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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