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________________ [2] जैन लिंग निर्णय // मनुष्य जन्म फिर मिलना है दुशवारा, सत्य बिन झूठ से नहीं होगा निस्तारा हम्तो कहते हैं मानना न मानना इख्तियार है तुम्हारा, खैर अब व्यवस्था सुनों कि इस जैन मत में दो आमना अनमान साढे अठारह सौ वर्ष दिगम्बर और श्वेताम्बर चलरहै थे परंतु मूर्ति विषय में किसी का द्वेष न था फिर इस श्वेताम्बर आमना में गच्छादिक के अनेक भेद व झगड़े टंटे मचे परन्तु जिन प्रतिमा से द्वेष और लिंग में भेद किसीका भी नहीं पड़ा परन्तु अनुमान पंद्रह सो इक तीस स के साल से प्रतिमा का द्वेषी लोंका लैया उत्पन्न हुआ सो उस लोंका ने भी प्रतिमा की पूजन और तीर्थ निषेध किया परंतु लिंग का भेद न किया सो इसका हाल तो हम नीचे लिखेंगे परंतु अनुमान सतरहसे के ही के साल में ढूंढक मत चला जिससे लोंके की परंपरा निषेध कर जिन प्रतिमा से विशष द्वेष और लिंग में भेद अर्थात् जिन आगम से विरुद्ध रूप धारण करके जैनी नाम से अपने को प्रसिद्ध कर विचरने लगा जाती कुल के जैनियों को बहकाने लगा समझानहीं दया। दया का नाम ले झगडा मचाने लगा औरोको करात त्याग आप रंगनादि खाने लगा ढाल चौपाई दोह! गायकर गाल बजाने लगा स्त्री बाल जीवोंको रिझाने लगा इसमें भी कुछ दिन के बाद भीकम पंथी कुछ लोगों को भ्रमाने लगा कहते हैं। हम त्यागी परन्तु अभक्ष वस्तु खाने लगा इत्यादि अनेक व्यवस्था होने से जो इस श्वेताम्बर आमनामें ओसवाल पोरवाड वगैरः जाति धर्म से बह के फिरते हैं तिनके वास्ते जैन शास्त्रों के अनसार साधू के जो उपगरन हैं उन्हीं को प्रथम लिखते हैं क्यों कि उन उपगरनो को जती समेगी, ढूंढिया, अर्थात बाईस टोला, तेरह पंथी सब कोई मानते हैं और उन्ही उपगरणों के नाम से मानते हैं और रखते भी हैं परन्तु बाईस टोला और तेरह पंथी ... जैन शास्त्र के अनुसार अभक्ष न तु मद्य मांस -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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