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________________ कुमतोच्छेदन भास्कर / [1] माया महरिहेणं हंसलक्षणणं पडगमाइएणं अगाकेने पडि स्थति 2 सरीणां गंधो दएणं पखालेइ 2 सरसेणं गोसीस चंदणेणंचच्चा उदल यति 2 सेयाएबधति 2 रयण समुग्गायं सिपखिवेति। अर्थ:-ये दो पाठ में पहिला पाठतो भगवतीजी का और दूसरा पाठ ज्ञाताजी सूत्रका इन दोनों पाठों में मतलब एकसा है और जिसमें फरक है उस बात को हम खोल देंगे इसलिये ये बुद्धिमान एक पाठ के अर्थ से ही समझ जावेंगे इसलिये प्रथम भगवतीजी का पाठ दिखाया है सो अर्थ जमालीखेत्री कुमार के पिता ने अपने नौकरों के हाथ नापित को बुलाया और नौकर लोगों ने नापित को कहा कि तुमको बुलाते हैं जब नापित बहुन हर्षित हुवा और स्नान करके अपने घर देव की पूजा करी फिर अच्छे वस्त्र आभरण पहिन कर उन नौकरों के साथ जिस जगह जमाली खेत्री कुमार का पिता था उस जगह आय कर दोनों हाथ जोड़ कर जमालीखेत्रीकुमार के पिता को बधापा देकर कहता हुवा कि हे स्वामिन् जो आप मेरे को आज्ञा करो सो मैं करूं तब जमाली क्षेत्री कुमार का पिता नाई से कहने लगा कि भादेवान प्रिय! जमाली क्षेत्री कुमार के परमयत्न कर के चार उंगलचोटी के केश दिक्षा लेने के वास्ते बाकी के सर्व केश दूर करो जब जमाली क्षेत्री कुमार के पितासे ऐसा बचन सुना तब नाई खुशी होकर दोनों हाथ जोड़ कर कहने लगा कि स्वामी तेहत अर्थात् आप का फरमाना ठीक है विनय संयुक्त बचन सुन के सुगंधित पानी करके हाथ पग धोय करके केशर चंदन कपूर आदि सुगंध वा शीत वस्त्र के आठ : परत करके मुखको बांधा फिर जमाली क्षेत्री कुमार के अच्छो तरह से चार उंगल केश बजे के आगे के प्रधान सरीखे केश नाईने जमाली कुमार के केश बनाये तब नाई ने मुख बांधा नाई के मुख बांधने का वस्त्र कह्या और मगावती रानी के कहने से श्री गोतम स्वामी ने मुख बांधा उस जगह मुंहपत्ती कही मुखतो - -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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