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________________ [ 54 ] जैन लिंग निर्णय // हरण दिकजाँका भेष लेकर फिरेंगे अब इस सूत्रक पाठसे अनेक तरह की विटम्बना और व्यवस्था बताई परंतु ऐसा सूत्र में किसी जगह न आया कि पासता आदि को मुख बंधन करके फिरना तो न कया भव तो शङ, मनि का और पासते का एकसा कह्या हां अलबत्ता क्रिया में वा श्रद्धा में फरक किया है दूसरा श्री दसवय कालिक जो के तीसरे अध्येन में 52 बावन अनाचार कहे परंतु खने मुख को अनाचार न कह्या तीमरा और भी सुनो कि श्री उतराध्येन जी के पाप श्रषण अध्धन में पाप श्राण का वर्णन किया कि अफना साधू विवरे तो पाच श्रवण सीझा तस्वीड ने तो पार श्रवण यरीया सुमति न सोधे अपवा संयन आदि न पाले इम रीति से अनेक बातें न पानने से पाप श्रवण कहा इस जगह ग्रंय बढ जाने के भय से हम ने सूत्र का पाठ आर अर्थ न लिखाया किंचित मतलब दिखाया बुद्धिमान विचार कर लेंग अब यहां आत्माअर्थीयो को विचारना चाहिये कि ऊपर लिखी बातों में तो पाप श्रवण कह्या परंतु मुख न बांधो भी पाप श्रवण है ऐसा सूत्र में नहीं बतायाहै भव्यप्राणियों तुम ने मिथ्यात्व को क्यों फैलाया तब फिर मुख बांधने वाले कहने लगे कि भवतीजी में शकाई के मध्ये लिखा है कि उघाड़े मुख बोले तो लबद्ध भाषा मुख ढांककर बोले तो निर्वद्ध भाषा इसी लिये क्यों झगड़ा मचात हो नाहक हम को बहकाते हो. उत्तर भोदेवानु प्रिय! भगवती शतक 16 उद्देश 3 में तुम्हारे कहने मुजब पाठ है परंतु ग्रंथ बढ जाने के भय से मूल और अर्थ नहीं लिखाते हैं किंचित् वहां का भावार्थ दर्शाते हैं तुम्हारे हृदय में कुगुरु का अर्थ बैठा उसे भगाते हैं क्योंकि देखो श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि हे भगवान् शक्रइंद्र सबद्ध भाषा बोले कि निर्वद्ध भाषा बोले तब श्रीमहाबीर स्वामी ने उत्तर दिया कि हे गोतम शक इंद्र हाथ मे मुख ढांक वा वस्त्र से मुख ढांक कर बोले तो निर्वद्ध भाषा और उघाडे मुख बोले तो सबद्ध भाषा इस रीति से कहकर फिर टीकाकार ऐमा कहते w ww .
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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