SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 50] जैन लिंग निर्णय // लेकर चलना न चाहिये इसलिये बुद्धि का विचार कर बचनको निकालो जिन आज्ञा को पालो तब मुख बाधने वाले कहने लगे कि रजोहरण से जब रज दूर करने का काम पड़ता है जब रज दूर कर लेते हैं नहीं काम पड़े तो पास में रक्खारहता है इसलिये ऊट प्रहर निकालने का कुछ काम नहीं उत्तर भोदेवानप्रिय यहां भी अकल का विचार कर बाद्ध के बोझा से मत दब अरे अकल के दुश्मन जैसे रजोहरण से काम पड़ जब रजको दूर करता है नैसही मुख से बोलने का काम पड़े जवही मुहपत्ती से मुख को आच्छादन करना अंगिकार करो अष्ट प्रहर का मुख बांधना परिहरी नाहक क्यों कदाग्रह करो जिन आज्ञा को सिरपर धरो जिससे तुम्हारा कल्याण होय इसपर भी फिर मुहपत्ती बांधने वाला कहता है कि मुख बांधना क्या सहज है क्योंकि मुख बांधने से जीव भीतर से व्याकुल होता है उमव्याकुलता से कष्ट होता हे उस कष्ट को सहना बहुत मुश्किल है इसलिये हम मुख बांधते हैं परिश्रम को सद्दकर परीसा को सहेते हैं आप लोग खुले मुख रहते हो परीसा नहीं सहते हो क्यों वार 2 हमसे कहते हो हम तम्हारी कदापि न मानेंगे उत्तर भी देवानप्रिय तुम हमारी न मानो सों तो तुम्हारी खुशी परंतु जो तुम जैनी नाम धराय कर जैन के साधु बात हो और जातिकुल के नियों को बहकात हो जैन का उढाह कराते हो इसलिये हम तुमको बार बार कहते हैं कि हे भोले भाई कष्ट उठाने ही से मुहपत्ती बांधते हो तो वस्त्र की मुहपत्ती से काट की मुहत्ती मे कष्ट अधिक होगा कोंकि कपड़ा नरम होताहै आर काष्ठ कठिन होता है इसलिये कष्ट का सहना ये तुम्हारा कहना अज्ञान रूप भंग का नशा है जो कष्ट उठाने सेही धर्म होता तो मरादेवी भग्तादि अनेक सत पुरुष मोव में गये और उन्होंने कुछ कष्ट न उठाया जिन आज्ञाको अराध कर केवल ज्ञान पाया दूसरा और भी मनो कि मंह की बाफ अर्थात हवा से वायकायकी हिंगा होती हे तो देखा मुंह बांधने से नाक का स्वांस अर्थात् हवा |
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy