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________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [15] छुड़ाया हमने तुमको यह पाठ सूत्रका दिखाया पाया ना जैनधर्म | जब ढूंढिया कहलाया आपतो डबा कितनेही जैनी जातके को डबाया धारा कुलिंग जैन धर्म क्यों लजाया तुम्हारे समझावने के लिये जैन लिंग ग्रंथको बनाया हमारी करुणा रूपी तीरने तुम्हारे पाखंडको उड़ाया इस बातको सुनकर मुंहपत्ती बांधने वाला कहने लगा कि सोमल संन्यासी ने काष्ट की मोहपत्ती बांधी इसलिये उसको खोटी प्रवृज्या कही सो हमतो काष्ट की मोहपत्ती नहीं बांधते किन्तु वस्त्र की मुंह पत्ति बांधतेहैं इसलिये सोमल संन्यासीका दृष्टांत देकर हमको कुलिंगी बतलाते हो तुम हमकू कहने में कभी नहीं शरमातेहो हमकू बुरा बतातेहो नाहक झगड़ा मचातेहो अपनी विद्वत्तामें नहीं समातेहो इसलिये बुद्धिका विचार कर बोलो हम कहते हैं मुंहपत्ती है इसको भी बुद्धि में तोलो उत्तर भोदेवानु प्रिय हम शास्त्र अनुसार विचारकर कहते हैं कि उस सोमल संन्यासी के काष्ट की मोहपत्ती बारबार मुंह से बांधी बांधीने ऐसा पाठ कह्या परन्तु तुम्हारी वस्त्रकी मोहपत्ती के वास्ते डोरा डालकर बांधी वा खोली ऐसा पाठ सत्र में कहीं नहीं आया इसलिये हमने तुमको जिनधर्म के बाहर अन्य लिंग बताया सो हमकं ऐसा पाठ कहीं बतलाइये कान मेंसे डोराखोल कर मोहपत्ती पड़ी लेहीरत्ता कहतां मुंहपत्ती की पडि लहेणा करी क्योंकि श्री उत्तरा ध्येनजी अध्येन 26 में गाथा२३ देखो मूलको मुहपोत्तीयंपडि लेहिता पडिलहिज्जा गोचगं गोछंगं लयं गुलिउ पथ्थाइ पडिले हइ अर्थः- मुख वस्त्र का की पच्चीस पडिलेहण कर पडित हणा करके बाद गुच्छाकी पडिलेहणा करे सो उंगली करके प्रतिलेखे पीछे झोली पटला आदि वस्त्रकी पाडलेहणा करे इस सूत्र में तथा अर्थम मंहपत्ती की पडिलहणा तो कही परंतु पडिलेहण करेके बाद आठ तह करके तागा लगाय पीछे गद्दीमें बांधना अर्थात् कानमें
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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