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________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [7] से देखो हमको तो इतनाही प्रयोजन था सो सज्जन पुरुषों को लिख दिखाया इसलिये सज्जन पुरुष आत्मार्थी निर्णय करके धर्म को अंगीकार करे किसीके मत जाल में न पड़े शुद्ध जिन धर्म को अंगीकार करे जिससे आपसमें न लडे मुंहपत्ती बांधने की इच्छा भी न करे क्यों कि लोक विरुद्ध बात को हृदयसे पर हरे इसलिये हमारा कहना है कि लोंकाते तो मंदरकी पूजा आदिक निषेध का मार्ग चला परंतु मुंहपत्ती मुख पर अष्टपहर बांधने का मार्ग उसने भी न चलाया अष्टपहर मुहपत्ती बांधने का मार्ग (17.6) के साल लवजी और धर्मदास छीपाने चलाया है और गुरूके बिना चारित्र भी इनहीं ने लिया है आगम के देखने से जिन आज्ञा विरुद्धभी इन्होंनेही कीया है इसलिये आत्मार्थी इन पुरुषों का संग न करे गा तो ठीक होगा। अब इस जगह प्रश्न उत्तर उठाते हैं / / मुंपत्ती बांधने वाले का भर्म खलासा दीखता है कि यह ढुंढक लोक भोले जीवों को बहकाते हैं जैन धर्म का उड्डाह कराते हैं अन्य मती लोगोंको हंसाते हैं आप डबे और भोले जीवोंको डुबातेहैं (प्रश्न) अजी मुहपत्ती तो गौतम स्वामी आदि गणघरोंने बांधी है फिर तुम्हारा निषेध करना क्यों कर बनेगा ( उत्तर ) भोदेवानु प्रिय गणचरादिक को महपत्ती बांधना कहतेहो इसलिये तुम्हारे को मृषा वाद आताहै क्योंकि देखो श्री बिपाक सूत्र अध्येन 9 में ऐसा लिखाहै सो पाठ दिखाते हैं / ___ तत्तेणसे भगवं गोयमे मीयंदेवीय पीठ उसणु गच्छति तत्तेणं सामीया देवीतंकठ सगडीयं अणं कठमाणी 3 जेणे व भूमी घरतणेव ओवा गच्छइ २त्ता॥ चउप्पडेणं वथ्थेणं मुंहबंध माणी भगवं गोयमे ऐवं वयासी तुभ्भे विणं भंते मुहपोनीयाय मूह बंधह तत्तेग सेभगवं गोयमे मीयादेवीय एवं वृत्ते समाणे मोहपोतीयाए मुह बंधई 2 त्ता अर्थ तिसपीछे भगवंत श्री गोतम स्वामी मगादेवी राणीके - -- -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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