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________________ अन लिंग निर्माय॥ बनात का ऊपर के वास्ते तिणिय पछागा // 6 // कहतां तीन चद्दर अर्थात् ओढ़ने की पिछोड़ी // 10 ॥रउहरणं // 11 // कहतां रजो हरण अर्थात् काजा दूर करने के वास्ते और जीव की रक्षा करने के लिये जिसको साँकत में ओघा कहते हैं // चोलपहा // 12 // कहता वस्त्र जिसको वर्तमान काल में ढुंगा के ऊपर बांधते हैं। महणतक // 13 // कहतां मंहपत्ती अर्थात् प्रमाण मजब वस्त्र बोलने के समय मुख को ढकने के वास्ते हाथ में रक्खे पादिय पाय पछणा ॥१४॥कहतां मात्रिया अथवा पाय पूछणा यह चौदह पारन के नाम जुदे जुदे कहे यह ऊपर लिखित उपगरण श्री वीतराग सरवज्ञ देवने साधू के संजम पालने के वास्त कहे और इनका प्रमाण अर्थात् कितना लंबा चौड़ा रक्खना सोतो भाष्य चर्णि निर्जक्ति टीका आदि में कये हैं और प्रयोजन भी उन्ही जगह कहेहैं सो हम इस जगह नहीं लिखते क्योंकि जो मूल के गानने वाले हैं उन शरूमों को मूलही से समझाना ठीक है कारण कि जिसको जो मानता ही नहीं है उस चीज का कथन करना जसा अंधे को आरसी का दिखाना है इसलिये अब हम जोकि ओसवाल पारवाड़ वगैरह जाती कुल के जैनी बाजते हैं उन सर्व सज्जन पुरुषों से कहना है कि ऊपर लिखित उपगरणों को पेश्तर तलाश करे और ऊपर लिखे मुजिब उपगरण जिसके पास पावे वोही जैन का साधु और भगवत आज्ञा में है और जो ऊपर लिखित उपगरणों से विपरीत होगा वो असाधू वा भगवत आज्ञा विरोधक और मिथ्या दृष्टि है इसलिये इन बातों का निरणय करना चाहिये नाहक कदाग्रहमें न पडना चाहिये इन के जाल में फंसके आत्मा न डुबाना चाहिये वर // 1 // अब जो हम ऊपर लिख आये हैं कि इनकी उत्पत्ती नीचे लिखेंगे सो यहां लिखते हैं कि गुजरात देशमें अमदाबाद नगरहै वहां एक लोंका नामे लिखारि (लहिया) रहता था वो ज्ञानजी जती के उपासरे में रह | कर पस्तक लिख कर आजिविका करता था एकदफे उसके मनमें |
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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