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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org जैन काल-गणना प्रार्य सुस्ती और सुस्थित- सुप्रतिबुद्ध-- इन स्थविरों की वंदना की है । प्रारंभ की मूल गाथा इस प्रकार है Pe Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ७वीं में भद्रबाहु सूत्रनिर्युक्तिकार लिखा है । 1 "नंमिण वद्धमाणं, तित्थयरं तं परं पयं पत्तं । इंद्रभू गणनाहं, कहेमि थेरावलिं कमसेो ॥ १ ॥” गाथा ६ठी में एक महत्त्वपूर्ण बात की सूचना है। स्थविर यशोभद्र के वर्णन में लिखा है कि उनके समय में प्रतिलोभी आठवाँ नंद मगध का राजा था। देखा निम्नलिखित गाथा "जसमद्दो मुणि पवरो, तप्पय सोहंकरो परो जायो । अटुमणंदा मगद्दे, रज्जं कुइ तथा इलाही || ६ | भद्र का स्वर्गवास इस थेरावली में तथा दूसरी सब पट्टावलियों में वीर निर्वाण से १४८ वर्ष बीतने पर होना लिखा है । इसी समय की सूचना आठवें नंद के होने की इस गाथा में की है । इस थेरावली में प्रागे जो निर्वाण से १५४ के बाद चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण लिखा है तथा आचार्य हेमचंद्र ने परिशिष्ट पर्व में निर्वाण से १५५ वें वर्ष में चंद्रगुप्त का जो राजा होना लिखा है उसका इस उल्लेख से समर्थन होता है । को अंतिम चतुर्दशपूर्वी और ७७ गाथावों में प्रार्य महागिरि को जिनकल्पी और सुस्ती को स्थविरकल्पी लिखा है । For Private And Personal Use Only गाथा १०वीं में आर्य सुहस्ती के शिष्य युगल सुस्थित सुप्रतिबुद्ध का वर्णन है; इसमें इन दोनों स्थविरों को कलिंगाधिप- भिक्षुराज- सम्मानित लिखा है । देखा आगे की गाथा
SR No.020391
Book TitleJain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherKalyanvijay
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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