SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८१ ) तानी गोत्रदेवीनी मूर्तिनां दर्शन करी स्तुति करी. पछी रात्रि ते देवीए पण पोताना अत्यंत शांत, अने महातेजस्वी स्वरूप सहित तेओ बन्ने भाइओने प्रत्यक्ष दर्शन आपीने कधुं के, तमारा पूर्वज लालणनी भक्तिथी वचनबडे बंधायेली पवी में तमोने योगी स्वरूपथी बे बखत सहाय आपी छे, एम कही तेणीए पोतानी एक स्फटेकनी मूर्ति तेओने आपी पोते अदृश्य थयां. पछी ते बन्ने भाइओए पोतानी ते गोत्रजादेवीना मंदिरनों त्यां जीर्णोद्धार कराव्यो, तथा तेमने नमीने कुटुंबसहित पाछा तेओ भद्रावतीमां आव्या. 40 त्यारबाद श्री कल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी वर्धमानशाहनी श्री नवरंगदेवीए सिद्धचक्रना आराधन रूप तप करीने, बे लाख मुद्रिका खरची तेनुं उजमं कर्यु. तेमज पद्मसिंहशाहनी स्त्री कमलादेवीए ज्ञानपंचमीनो तप करी ने लाख मुद्रिका खरची ज्ञानपंचमीनुं उजमणुं कर्य, तथा घणा आगमग्रंथो विगेरे लखान्यां. वर्धमान - चाहे पोताना सर्वथी लघु पुत्र जगड़ना विवाह प्रसंगे ण लाख मुद्रिका खरचीने याचकचारणोने चार हजार उंट बक्षीस आप्या पद्मसिंहशाहे पण पोताना पुत्र रणम For Private And Personal Use Only
SR No.020388
Book TitleJain Gotra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1923
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy