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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्यु, ते वखते त्यां श्रीश्रीमाली ब्राह्मणोना एकत्रीस हजार घरो हता. अनुक्रमे संवत ५०३ मा ते भिन्नमाल नगरमां सिंहनामे राजा राज्य करतो हतो, ते राजाने पुत्र न होवाथी तेणे पोतानी खीमजदेवी नामनी गोत्र. देवीनुं आराधन कयु, सात दिवसो सुधी जलरहित उपवास करी दर्भना संथारापर ते सूतो त्यारे देवीए प्रत्यक्ष थइ कयुं के तारा भाग्यमां पुत्र नथी, माटे जो तारे पा. लक ( दत्तक ) पुत्र जोइतो होय तो महारी बहेन जइयाण देवी तुं आराधन कर ? ते तने तेचो पालक पुत्र आपशे, वळी ते जयाणदेवीनो पासाद अहींथी पूर्वदिशामा छे. पछी राजाए तेणीनुं वचन स्वीकारीने प्रभाते त्यां जइ ते जयाणदेवीनी स्तुति करी. प्रसन्न थयेली देबीए प्रत्यक्ष थइ कयु के तारी पुत्रनी वांछा हुं संपूर्ण करीश. एम कही ते देवी पोताना शानना उपयोगथी अवंती नगरीना मोहल नामना क्षत्रियना तुरतना जन्मेला पुत्रने लावी, अने पोताना निर्माल्य एवां पुष्पोना समूहमा मूक्यो. पछी तेणे ते सिंहराजाने कयु के मारा निर्माल्य पुष्पोना समूहमां जे बाळकने में मूक्यो छे, तेने लेइने तारे मारा नामथी तेनु जइआणकुमार नाम राख, ते बालक 4 Darpan व For Private And Personal Use Only
SR No.020388
Book TitleJain Gotra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1923
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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