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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) ज कहुं, बोल बीजा सुणजे ॥ श्रावक हितने कार णे, गुण पांत्रीश गुणजे ॥१॥ सर्व गाथा ॥ ३३ ॥ ॥ ढाल ॥ बे कर जोडी ताम रे,लना वीनवे ॥ ए देशी॥ ॥श्रावक गुण पांत्रीशो रे, व्यवहार शुरु सही ॥ शिष्टाचार प्रशंसतो ए ॥१॥ कुलाचार एक धर्मो रे, अने अन्य गोत्रमा ॥ विवाह काज करे सही ए॥२॥ चोथो गुण अंग धार रे, पापथकी बीये ॥ देशाचार विधि श्रादरे ए ॥ ३ ॥ अवर्णवाद म बोल रे, श्रतो ने बतो॥ निश्चे राजादिक तणो ए ॥॥ जो निलो पामोश रे, शुजस्थानकें रहे ॥ बहु बारे घर वरजीयें ए ॥५॥ करिजें उत्तम संग रे, ए गुण आ उमो ॥ मात पिता गुरु मानवा ए ॥६॥ उपव के संगम रे, श्रावक परिहरे ॥ निंदनीय कारण तजे ए ॥७॥ आयपतने अनुसार रे, श्रावक व्यय करे॥ वेष धरे चित्त जो करी ए ॥॥ श्राठे बुझिनोजा ण रे, ए गुण चउदमो ॥ धर्मकथा नित्य सांजले ए ॥॥ जोजन करे सहि त्याज्य रे, पुरुष अजीरणे ॥ ए गुण जाणो शोलमो ए॥ १०॥ कालें जोजन नाव रे, शाता जोश करी ॥ लोलपणे जाजु नहिं ए For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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