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________________ www.kobatirth.org ( ४७ ) जलि आगे रे ॥ वाटो रे ॥ चिंतवतां शुज ते लहे ए ||१६|| दिव्यनादी निरखी करी, जावो जावना एहो रे ॥ जेहो रे ॥ सुखशाता अंगें लहो रे ॥ १७ ॥ सि द्ध अवस्था जावजे, पर्यंक यासन देखी रे || पेखी रे ॥ काउस्सग्ग मुद्रा जिन ती ए ॥ १८ ॥ जावो चेन वंदन करतां, एह अवस्था सारो रे ॥ पारो रे ॥ न वनो एम पामो सही ए ॥ १५ ॥ त्रण अवस्था ए कही, एणी पेरें पूजा कीजें रे ॥ तजीजें रे ॥ दोष स कल जाणी करी ए ॥ २० ॥ पुष्प पड्युं पाये ड्युं, मस्तकें चढियुं जेहो रे || तेहो रे ॥ परिहरी कुव स् ध ए ॥ २१ ॥ नाजियकी हेतुं नहिं, मलिन लोकें फरस्युं रे ॥ फरस्युं रे ॥ अलगुं कीडे जे जख्युं ए ॥ २२ ॥ कुसुम पत्र नवि खंमियें, फल नवि खंको कोयो रे || जोजो रे ॥ पूजा राग तुमने वली ए ॥ ॥२३॥ खं संयुं धोतियुं, मेलुं मूक सबेदो रे ॥ नेदोरे ॥ पूजाविधि समजी करी ए ॥ २४ ॥ पद्मास न पूरी करी, जिननी पूजा कीजें रे ॥ धरीजें रे ॥ नेत्र नासिका उपरें ए ॥ २५ ॥ मौन करी मूखें बां धियें, पडो मुख कोशो रे ॥ रोषो रे ॥ रागतजी पूजा करो ए ॥ २६ ॥ एकवीश जेद पूजा तणा, स ॥ हि० ४ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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